सोमवार, 23 अप्रैल 2007

सोचता हूँ

सोचता हूँ, समय से पहले,
ईसा को शूली, सुकरात को विष,
आजाद, गॉधी को गोली,
खुदी, भगत को फांसी क्यों मिली?
क्या वे पागल थे?
सामान्य स्तर से ऊँचा
या ऊससे नीचा,
सोचना पागलपन ही तो है।
यदि वे जीवन के सामान्य मूल्यों को,
घृणा, ईषर्या, द्वेष, ऊँच-नीच की भावना
को समझ लेते,
तो शायद कुछ दिन और जी लेते।।

1 टिप्पणी:

Srijan Shilpi ने कहा…

हर चिंतक इन सवालों पर जरूर कभी न कभी सोचता है। देखिए, कभी मैंने भी इस पर सोचा था और वह सोच किस रूप में अभिव्यक्त हुई, इस कविता में।

आपकी सोच का अगर कुछ निष्कर्ष निकले तो हमें भी बताइएगा।