बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

चिरइया


जोहते जोहते वो घड़ी आ पड़ी ।
आसमां में है उड़ने चिरइया चली ।
रूत ये रूक के जरा देर रहती खड़ी।
है पहर को भी जाने की जल्दी बड़ी।

सर्द अंधेरों के पहरे सभी तोड़ के
धूप ने लाल चुनरी सजाई तेरी।
सूनी रातों को पीछे तू अब छोड़ दे
सुबह ने आज गायी विदाई तेरी।

रंग सातों किरन के खुद गूँठ के
गगन ने ही है डोली बनाई तेरी।
पवन के संग में तोहे ले जाने को
पालकी दस दिशाओं ने उठाई तेरी।

उड़ फलक पे तू दुनिया से अपनी मिले।
राह फूलों सी तेरी खिल के हंसती चले।
ले के उड़ जा कलेजे का टुकड़ा मेरे।
वो दुआ बन के तुझको दुलारा करे।

दे दूँ दम जो है बाकी बाजुओं में मेरे।
भर दूँ रंग रूत के सारे पंखुओं में तेरे।
खुल के उड़ कि मैं रो के भी हंसता रहूं।
फिक्र दे के हवा को मस्त चलता रहूं।

दो घड़ी दो पहर मन भरमने से क्या
हर घड़ी हर पहर याद हंसती रहे।
बनी बहुरिया गगन की चिरैया मेरी
हर ऋतु में धुन शुभ की ही बजती रहे।

हाल तेरा अब पाएगी ऐसे धरा
चाल रूत की खबर तेरी ले आएगी।
रंग अंबर का जब भी ये बदला करे
शुभमंगल की होगी कोई बानगी।

चहक तेरी फलक खनखनाती रहे,
गूँज सुन के जमीं ये भी गाती रहे।
फूल बन के बसंत तोरे अंगना खिले,
महक उसकी कसक मेरी मिटाती रहे।

चैन चित्त में बसे शरद की ठंड सा
जेठ के सूर्य सा जस दमकता रहे।
सावनभादो सी बरसे तोरे अंगना खुशी
मस्त फागुन सा मन तोरा उड़ता रहे।


6 टिप्‍पणियां:

Shiv ने कहा…

बहुत खूब।
यहॉं देर से क्यों पहुंचा?

विशाल सिंह ने कहा…

मुझे खुशी है कि आपको अच्छा लगा। कल ही लिखी थी, बहन की शादी के लिए खरीददारी कर रहा था तो ऐसे ही मन में आ गयी थी।

सुरिन्दर सिंह ने कहा…

बहुत खूब...

Gujarat postal circle recruitment 2016 ने कहा…

Great Information in the post

Katy ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

जीवन बिम्ब को उकेरती कृति झंकृत कर दिया साधुवाद आदरणीय।