tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post3553719299222040576..comments2023-08-14T21:02:32.841+05:30Comments on अनहद: धर्म साम्प्रदायिकता और अध्यात्मविशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-85142965338904435362007-03-29T20:12:00.000+05:302007-03-29T20:12:00.000+05:30प्रतीकजी आपकी आपत्ति से मैं सहमत हूं, किन्तु आजकल ...प्रतीकजी आपकी आपत्ति से मैं सहमत हूं, किन्तु आजकल विशेषतः मिडिया और राजनीति में धर्म का अर्थ मजहब के रुप में लिया जाता है। मैंने इस तथ्य तथा मेरे लेख के संदर्भ में उपादेयता को मूल लेख में जोड दिया है।विशाल सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-77774405890425118352007-03-26T23:23:00.000+05:302007-03-26T23:23:00.000+05:30विशाल जी, मैं आपके चिंतन से काफ़ी कुछ सहमत हूँ। लेक...विशाल जी, मैं आपके चिंतन से काफ़ी कुछ सहमत हूँ। लेकिन आपकी यह बात समझ नहीं आई कि "अध्यात्म" धर्म की अपेक्षा ज़्यादा व्यापक शब्द है। जहाँ तक मैं समझता हूँ, धर्म भी अध्यात्म की ही तरह बहुत व्यापक और गूढ़ शब्द है। हाँ, "धर्म" की व्यापकता तभी तक शेष रहेगी जब तक इसका अर्थ "मज़हब" के रूप में नही किया जाता है और मूल अर्थ संजोया जाता है।<BR/><BR/>मेरे ख़्याल में नास्तिक भी उतने ही कट्टरपंथी हैं जितने कि आस्तिक। फ़र्क़ बस यह है कि वे ईश्वर की सत्ता को नकारने के प्रति दुराग्रही हैं। आस्तिक और नास्तिक, दोनों की खोज पर निकलने से भयभीत हैं और इसीलिए खेमेबाज़ी कर बैठे हुए हैं।Pratik Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02460951237076464140noreply@blogger.com