tag:blogger.com,1999:blog-57144416223453752262024-03-07T15:31:48.372+05:30अनहदकुछ अपनी, कुछ दुनिया कीविशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-73408669801381607512013-02-06T07:40:00.001+05:302013-02-06T07:40:33.263+05:30चिरइया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
जोहते जोहते वो घड़ी आ पड़ी ।<br />
आसमां में है उड़ने चिरइया चली ।<br />
रूत ये रूक के जरा देर रहती खड़ी।<br />
है पहर को भी जाने की जल्दी बड़ी।<br />
<br />
सर्द अंधेरों के पहरे सभी तोड़ के<br />
धूप ने लाल चुनरी सजाई तेरी।<br />
सूनी रातों को पीछे तू अब छोड़ दे<br />
सुबह ने आज गायी विदाई तेरी।<br />
<br />
रंग सातों किरन के खुद गूँठ के<br />
गगन ने ही है डोली बनाई तेरी।<br />
पवन के संग में तोहे ले जाने को<br />
पालकी दस दिशाओं ने उठाई तेरी।<br />
<br />
उड़ फलक पे तू दुनिया से अपनी मिले।<br />
राह फूलों सी तेरी खिल के हंसती चले।<br />
ले के उड़ जा कलेजे का टुकड़ा मेरे।<br />
वो दुआ बन के तुझको दुलारा करे।<br />
<br />
दे दूँ दम जो है बाकी बाजुओं में मेरे।<br />
भर दूँ रंग रूत के सारे पंखुओं में तेरे।<br />
खुल के उड़ कि मैं रो के भी हंसता रहूं।<br />
फिक्र दे के हवा को मस्त चलता रहूं।<br />
<br />
दो घड़ी दो पहर मन भरमने से क्या<br />
हर घड़ी हर पहर याद हंसती रहे।<br />
बनी बहुरिया गगन की चिरैया मेरी<br />
हर ऋतु में धुन शुभ की ही बजती रहे।<br />
<br />
हाल तेरा अब पाएगी ऐसे धरा<br />
चाल रूत की खबर तेरी ले आएगी।<br />
रंग अंबर का जब भी ये बदला करे<br />
शुभमंगल की होगी कोई बानगी।<br />
<br />
चहक तेरी फलक खनखनाती रहे,<br />
गूँज सुन के जमीं ये भी गाती रहे।<br />
फूल बन के बसंत तोरे अंगना खिले,<br />
महक उसकी कसक मेरी मिटाती रहे।<br />
<br />
चैन चित्त में बसे शरद की ठंड सा<br />
जेठ के सूर्य सा जस दमकता रहे।<br />
सावनभादो सी बरसे तोरे अंगना खुशी<br />
मस्त फागुन सा मन तोरा उड़ता रहे।<br />
<br />
<br />
</div>
विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-82172248395033975022013-02-05T20:34:00.000+05:302013-02-05T20:34:13.606+05:30रात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
कुछ बीती है तारीख अभी तक इस तरह,<br />
खुशी देख के भी खुश होने से डर लगता है।<br />
भरोसा अंधेरे में नहीं है खुद अपनी नजर का<br />
साये के साथ भी रोशनी का खेल चलता है।<br />
<br />
स्याह पहरा सुर्ख रंग पर हर पहर चढ़ता है,<br />
सहर हो तो भी शाम का ही मंजर रहता है।<br />
कट जाए रात, गर सबर चांद के दीदार का हो,<br />
नजर आए तो फिर छिप जाने का डर लगता है।<br />
<br />
रात लंबी है, सिर्फ सो के बिता दूँ कैसे?<br />
दर्द इतना है, रो रो के भूला दूँ कैसे?<br />
बंद आखों में भी आते हैं ख्वाब अंधेरों के<br />
नम आखों में फिर सपने सजा लूँ कैसे?<br />
<br />
जंग हालात से हो तो फिर भिड़ पड़ूं दम भर पर<br />
चढ़ाई वक्त पर किस तरफ, किस घड़ी कर लूँ।<br />
विदाई होनी है जिसकी खुद खुदा के मन से<br />
लड़ाई कैसे तख्त-ए-वक्त से आप ही लड़ लूँ।<br />
<br />
<br />
चलो अब दर्द से ही कर के कुछ बात<br />
चलो फिर रात से भी अपनी दोस्ती कर लूँ।<br />
सुबह होगी कभी, जब भी हो, ये है मालूम<br />
उसके आने तक क्यों ना कुछ तसल्ली कर लूँ।।<br />
<br />
</div>
विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-33417716799922022362007-05-31T18:14:00.000+05:302008-12-13T15:28:10.893+05:30अब फायर फॉक्स भी हिंदी मित्र<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9YxRYBNTO5BV-UdDE4HCdWn_SuOMcvrMahGVIlELC0v_5Sms4L9s9sChdmwXQgDnz7qgHGCsyDIMvROLOM4Pj2GDGjXnWlhGVvuuDiENUb7tj3sqd0GnOWdZEkLsxjArXYM5TYUfKhAA/s1600-h/New+Bitmap+Image+%282%29.bmp"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9YxRYBNTO5BV-UdDE4HCdWn_SuOMcvrMahGVIlELC0v_5Sms4L9s9sChdmwXQgDnz7qgHGCsyDIMvROLOM4Pj2GDGjXnWlhGVvuuDiENUb7tj3sqd0GnOWdZEkLsxjArXYM5TYUfKhAA/s320/New+Bitmap+Image+%282%29.bmp" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5070704096664664258" border="0" /></a><br />हिन्दी जगत के लिये खुशखबरी, मोज़िला वालों ने आखिर अपने नये संस्करण <a href="http://wiki.mozilla.org/Firefox3">फॉयरफाक्स-३</a> में हिन्दी की रेन्डरींग सही कर ली। अभी यह संस्करण उपलब्ध नहीं है, पर डेवलपर वर्जन <a href="http://www.mozilla.org/projects/firefox/3.0a1/releasenotes/">ग्रैन पैराडिजो अल्फा वन</a> टेस्टिंग के लिए उपलब्ध है। मैंने अभी अभी इसे इन्स्टाल किया है, और नारद को खोलते ही सही हिन्दी रेन्डरींग देखकर खुशी से उछल पडा।<br /><br />इन्टरनेट एक्सप्लोरर तो हमेशा से हिन्दी के साथ मित्रवत रहा है, पर अगर कम्प्यूटर में हिन्दी समर्थन सक्षम ना किया गया हो तो फॉयरफाक्स में परेशानी होती थी। मेरे कॉलेज के इन्टरनेट सेंटर में यह समस्या हमेशा मुझे परेशान किया करती थी। अब कम से कम एडमिनिस्ट्रेटिव एकाउण्ट के बिना भी किसी भी कम्प्यूटर पर हिन्दी का उपयोग किया जा सकता है। फायरफाक्स में प्लग इन्स के माध्यम से हिन्दी IME डाल कर आराम से हिन्दी लिखी भी जा सकती है।<br />फॉयरफाक्स-३ के पूर्ण संस्करण के आने में अभी कुछ समय लग सकता है। लेकिन इतना तो पक्का है कि अब आगे से यह हिन्दी से पंगा नहीं करेगा। दिनोंदिन फायरफाक्स की बढती लोकप्रियता के साथ इसका हिन्दी सपोर्ट ना होना हिन्दी के सुगम प्रयोग में अवरोधक था। इस बारे में विस्तार से शायद ई-पण्डितजी बतायें।<br />चलिये आप भी <a href="http://ftp.mozilla.org/pub/mozilla.org/firefox/releases/granparadiso/alpha1/">प्रयोग</a> कर के देख लीजीए।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-14820743868739296272007-04-23T12:37:00.000+05:302007-04-23T12:37:22.684+05:30सोचता हूँसोचता हूँ, समय से पहले,<br />ईसा को शूली, सुकरात को विष,<br />आजाद, गॉधी को गोली,<br />खुदी, भगत को फांसी क्यों मिली?<br />क्या वे पागल थे?<br />सामान्य स्तर से ऊँचा<br />या ऊससे नीचा,<br />सोचना पागलपन ही तो है।<br />यदि वे जीवन के सामान्य मूल्यों को,<br />घृणा, ईषर्या, द्वेष, ऊँच-नीच की भावना<br />को समझ लेते,<br />तो शायद कुछ दिन और जी लेते।।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-38251988191449751402007-04-10T20:41:00.000+05:302007-04-10T20:41:20.430+05:30अल्पमत में न्याय: सरकार बनाम न्यायपालिकाजब भारत स्वतंत्र हुआ था और हमारे पूर्वजों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्ष में निर्णय लिया था तो बहुत सारे लोगों को संदेह था की भारत की जनता में लोकतांत्रिक परिपक्वता नहीं है और दूरदर्शी नेतृत्व के अभाव में हमारा लोकतन्त्र भीड़ तंत्र में बदल सकता है लेकिन सौभाग्य से दुनिया के सबसे लंबे लिखित संविधान ने <span>लोकतंत्र</span> के विभिन्न स्तंभों के बीच शक्तियों के वितरण की व्यवस्था की ताकि एक स्तम्भ कि कमज़ोरी को दूसरा संभाल सके और ज़रूरत पड़ने पर उसे ठीक भी कर सके। आज इतने वर्षों बाद, भारतीय लोकतंत्र पर नज़र डालने से लगता है कि अगर कोई अंग सही कार्य कर रहा है तो वह न्यायपालिका ही है विधायिका और न्यायपालिका कि साख तो भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों ने नीलाम कर दी है पर आम जनता आज भी न्यायपालिका को इन सबसे विश्वसनीय मानती है संविधान ने लोकलुभावन राजनीति या राजनैतिक पूर्वाग्रहों के चलते विधायिका के भटकने की स्थिति में उस पर लगाम कसने की दृष्टि से न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा का अधिकार दिया।<br /><br />लोकतंत्र को आदर्श व्यवस्था मानने के पीछे यह मान्यता है कि बहुमत स्वाभाविक रुप से सत्य के पक्ष में होगा, किन्तु ऐसा सदैव नहीं होता। संविधान सभा की चर्चा के दौरान नेहरु ने कहा था कि यद्यपि लोकतन्त्र मे उन्हें पूरी आस्था है लेकिन वो यह नहीं मान सकते लोगों की बडी संख्या जो निर्णय ले वह हमेशा उचित ही होगा। एक बड़े वर्ग के फ़ायदे के लिए सख्यागत रूप से अल्पसंख्यक लोगों के मौलिक अधिकार नहीं छिने जा सकते, भले ही बहुमत इसके पक्ष में ही क्यों न हो। सत्ता के दुरुपयोग की संभावना भारत जैसे प्रतिनिधि लोकतन्त्र में और बढ़ जाती है, जहां विधान लोग नहीं बल्कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि बनाते हैं। संसद कोई भी निर्णय ले ले तो सांसद उसे जनता की इच्छा बता कर उचित ठहराते हैं भले ही सामान्य जनता की राय उनसे इत्तेफ़ाक़ न रखती हो। जाहिर है ऐसी परिस्थितियों में एक स्वतन्त्र न्यायपालिका और सजग न्यायिक सक्रियता ही व्यवस्था को स्वस्थ बनाये रख सकती है। लेकिन हमारे प्रधान्मन्त्रीजी (और उनकी पूरी टोली) को न्यायपालिका द्वारा संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन नागवार गुजर रहा है। सीताराम येचुरीजी ने तो न्यायपालिका को जनविरोधी तक कह डाला। संसद की सर्वोच्चता के नाम पर न्यायिक समीक्षा के संवैधानिक प्रावधान को विधायिका के कार्य में हस्तक्षेप बताया जा रहा है।<br /><br />दबे सुरों में न्यायपालिका का विरोध तो पहले से ही चलता आ रहा था लेकिन आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय की रोक के बाद नेताओं की ख़ीज बढ़ गयी है। कुछ लोग कह रहे हैं कि आखिर जब ससद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया था तो कोर्ट कैसे रोक लगा सकती है। संसद जनता के प्रति जवाबदेह है जबकि कोर्ट नहीं। इस तर्क का खोखलापन कोर्ट के आदेश आने के अगले दिन विभिन्न समाचारपत्रों में पाठकों की प्रतिक्रियओं से स्पष्ट होता है, Hindustan Times, Telegraph, BBC, NDTV आदि विभिन्न माध्यमों पर लगभग नब्बे प्रतिशत लोगों का मानना था कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सही था। लेकिन किसी नेता ने न्यायालय की आपत्तियों को समझने की जरुरत नहीं समझी। क्या कोई इस तथ्य से असहमत हो सकता है कि आरक्षण के दायरे से क्रीमी लेयर को न हटाने की स्थिति में अवसरों की समानता का मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है और ऐसी स्थिति में कुछ लोगों को गैरवाज़िब लाभ मिलेगा। इतने वृहद प्रभाव वाले नीतिगत फ़ैसले को 70 साल पुराने औपनिवेशिक सर्वेक्षण के आधार पर कैसे निर्धारित किया जा सकता है।केन्द्र सरकार की उलूलजूलूल आरक्षण नीति पर न्यायालय के सवालों के बाद इस विषय पर राष्ट्रीय बहस का आरम्भ होना चाहिए था, सरकार को भी आत्ममंथन का अवसर मिला था, लेकिन किसी सकारात्मक शुरुआत की जगह सरकार न्यायपालिका से मोर्चा लेने को तैयार दिख रही है।कोर्ट के सामान्य प्रश्नों का उत्तर देने की बजाय सरकार 'संसद सर्वदा उचित होती है' के अड़ियल रुख पर अड़ी रही।<br /><br />आरक्षण के अलावा पिछले दिनों कुछ और ऐसे मुद्दे रहे जिनके कारण सरकार न्यायपालिका से भिड़ी हुई है जैसे- दागी मन्त्रियों को न शामिल करने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को सरकार ने यह कह कर अस्वीकार कर दिया कि गठबन्धन के युग में ऐसे कदमों से सरकार अस्थिर हो सकती है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति नरम रुख अपनाने और अवैधानिक आव्रजन कानून में सशोधन पर भी सुप्रीम कोर्ट सरकार को फ़टकार लगा चुका है। चूँकि ये मसला राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित था, सरकार उस वक्त बचाव की मुद्रा में आ गयी थी। आज स्थिति दूसरी है- न्यायपालिका राष्ट्रहित की ओर तो है, लेकिन दूसरे पक्ष में सस्ती लोकप्रियता('?'कम से कम अर्जुन सिंह एण्ड कंपनी यही सोचती है) है,इस लिए मनमोहनजी भी न्यायपालिका को नसीहत देने की स्थिति में आ गये हैं। दीगर बात है कि हम और आप उनसे असहमत हैं,पर ससद उनके साथ है,बहुमत उनके साथ है अतः उन्हें लगता कि वो जो बोल देंगे वही सही हो जायेगा।<br /><br />आदर्श विहीन राजनीति के इस युग में आम आदमी ऐसे ही अनमना है,अगर न्यायपालिका की संस्था पर चोट किया गया तो लोकतन्त्र में जनता की बची खुची निष्ठा भी चल बसेगी।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-35537192992220405762007-03-29T10:11:00.000+05:302007-03-29T10:11:50.445+05:30धर्म साम्प्रदायिकता और अध्यात्मआज की दुनिया संक्रमण काल से गुजर रही है। जहाँ एक ओर तार्किक अनीश्वरवाद और आध्यात्मिक मानववाद तेजी से कट्टरपंथी मान्यताओं की जगह ले रहे हैं वहीँ धार्मिक असहिष्णुता और जेहादी आतंकवाद पहले से कहीँ ज्यादा उग्र रुप से सर उठा रहे हैं। दुःख तब होता है जब तथाकथित शिक्षित और धार्मिक लोग भी धर्म के विषय में एकांगी दृष्टिकोण रखते हैं, अपने पंथ की महानता और दुसरे को तुच्छ सिद्ध करने को अपना पुनीत कर्तव्य समझते हैं। कई बार लगता है कि अगर धर्म की यही अवधारणा है तो ऐसे धार्मिक लोगों की अपेक्षा नास्तिक होना लाख गुना अच्छा है।<br /><br />अपने अस्तित्त्व के आरंभिक दिनों से मानव ने अनुभूत और दृष्ट जगत को परखने, जीवन के अर्थ को तलाशने और प्रकृति से संबंधों को समझने का प्रयास किया है। इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप धर्म की खोज (कुछ लोग इसे अविष्कार या बोध की संज्ञा देना चाहेंगे) हुई। स्वाभाविक रुप से भौतिक जगत के परे का विषय होने के कारण अलग अलग संस्कृतियों, जनों और परिवेशों मे धर्म और आध्यात्म की विवेचना अलग अलग तरीकों से हुई। विशेषकर हमारे भारतवर्ष में हम धार्मिक विचारों में विभिन्नतायें और विसंगतियों का समन्वय देख सकते हैं। ये विभिन्नतायें हजारों वर्षों से एक साथ रह रहीं हैं, इस सह-अस्तित्त्व ने हमारे सामाजिक जीवन मे मतभेदों को भी सम्मान से देखने और बहुआयामी दृष्टिकोण के विकास की प्रेणणा दी है। इसके विपरीत संकुचित सांप्रदायिक दृष्टिकोण घृणा और दक्षिणपंथी आक्रामकता को बढावा देता है। राष्ट्रपति कलाम का कहना है कि हमारे समाज को धर्म की जगह आध्यात्मिकता की ओर बढ़ाना चाहिऐ। आध्यात्म एक व्यापक शब्द है और शायद अध्यात्मिक मानववाद ही वह साझा धरातल है जहाँ सारे पंथ सहमति की ओर बढ़ाते हैं।<br /><br /><blockquote> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">मैंने</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">शब्द</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">का</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">प्रयोग</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">मजहब</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">या</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">religion</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अर्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">किया</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">, </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">यद्यपि</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अधिकांश</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">लोग</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">कि</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">इस</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">व्याख्या</span> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">से</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">असहमत</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">होंगे</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">। </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">प्राचीन</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">काल</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">से</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">ही</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">का</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">प्रयोग</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">संप्रदाय</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">या</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">पंथ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">के</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अर्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">करने</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">कि</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">बजाय</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अपेक्षित</span> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">कर्तव्य</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">के</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">संदर्भ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">किया</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">जता</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">रहा</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">, </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">आज</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">भी</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">मित्र</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">-</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">, </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">दांपत्य</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">-</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">और</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">गठबंधन</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">जैसे</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">पदों</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">को</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">इसी</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अर्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">प्रयुक्त</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">किया</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">जाता</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">। </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">इस</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अर्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">भी</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">आध्यात्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">कि</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">तरह</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">एक</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">व्यापक</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">और</span> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">वस्तुपरक</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">शब्द</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">जो</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">परिवर्तनशील</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">और</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">विकासशील</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">होने</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">के</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">साथ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">साथ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">प्रत्यास्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">भी</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">। </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">किन्तु</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">वर्त्तमान</span> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">समय</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">विशेषकर</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">राजनितिक</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">संदर्भ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">को</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">मजहब</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">या</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">संप्रदाय</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">का</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">पर्यायवाची</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">माना</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">जाता</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">। </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">इस</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">लेख</span> <span style="color: rgb(153, 51, 0);">के</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">परिप्रेक्ष्य</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">का</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">प्रयोग</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">मैंने</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">मजहब</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">के</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अर्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">किया</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">है</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">, </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">इसके</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">शास्त्रीय</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">अर्थ</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">नही</span><span style="color: rgb(153, 51, 0);">।</span></blockquote><span style="color: rgb(153, 51, 0);"> </span><br />प्रश्न यह नहीं है कि ईश्वर है या नहीं, जिन्हे ईश्वर में विश्वास नहीं है वह तो ज्यादा से ज्यादा ऐसे विषयों कि निरर्थकता पर मुस्करा के अपनी राह चलते बनेंगे। पर जिन्हे इश्वर में विश्वाश है उन्हें तो उसकी सार्वभौमिकता पर भी भरोसा होना चाहिये। ऋग्वेद में कहा गया है "एकम् सद्विप्रा बहुधा वदन्ति "(सत्य एक ही है, विद्वान् उसे विभिन्न प्रकार से बताते है ) । सारे मार्ग एक ही ईश्वर को जाते हैं। अगर यह बात सबकी समझ मे आ जाती तो शायद इतना द्वेष और वैमनष्य ना रहता . एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज में किसी भी संवेदनशील विषय कि विवेचना दृष्टिपरक ढंग से होनी चाहिये। पर विशेषकर धार्मिक मामलों में लोग निष्कर्ष पहले ही निकल लेते हैं और तर्क का प्रयोग केवल स्थापित मान्यताओं को जबरन सही सिद्ध करने के लिए होता है। मैंने आँर्कुट पर कई फोरम ऐसे देखे हैं। किसी भी धर्मं में कई ऐसी मान्यताएं होती हैं जिन्हे अंधविश्वास और पुर्वजों की अज्ञानता का प्रतिफल कह सकते हैं। विज्ञानं ने ऐसे तथ्यों की निराधारता असंदिग्ध रुप से सिद्ध कर दी है। इन साक्ष्यों के आलोक मे हमे धर्म के विकास के इतिहास , और धर्मग्रंथों के पुनरावलोकन की आवश्यकता प्रतीत होती है।<br />कोई भी विचारवान मनुष्य धर्मग्रंथों के मिथकों पर ईश्वर की वाणी मान कर विश्वास नहीं कर सकता। पर मेरे कुछ मुस्लिम दोस्त कुरान में लिखी एक एक बात को अल्लाह का कहा अन्तिम सत्य मनाते हैं, जिसमें परिवर्तन कि कोई गुंजाईश नहीं है। यही हाल न्यूनाधिक रुप से हिंदुओं और ईसाईयों में भी है। सत्य और असत्य, उचित और अनुचित का निर्णय दृष्टिपरक विवेचना से ना करके धर्मथों से होती है। आश्चर्य की बात है कि पढे लिखे यहाँ तक की डाक्टर जाकिर नायक जैसे लोग भी मानते हैं कि मानव का विकास कापियों से ना होके ऐडम और इव की जोडी से 6000 वर्षों पूर्व हुआ। ऐसा अंधविश्वास ना केवल रुढ़िवादिता को बढावा देता है अपितु इससे धार्मिक असहिष्णुता भी बर्हती है। आज के समय कि जरुरत वैज्ञानिक आध्यात्म्वाद कि है जिससे सभी धर्मों के मानने वाले अपनी समानताओं पर ध्यान देंगे नाकी विसंगतियों और मतविरोधों को।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-34611498995276119012007-03-22T12:50:00.000+05:302007-03-22T12:50:42.097+05:30नन्दीग्राम : खेत, सूअर और आदमी"सभी पशु समान हैं किंतु कुछ पशु दूसरों से ज्यादा समान हैं।"<br /><i>All animals are equal, but some are more equal than others</i>.<br /><br />नंदीग्राम के ताजा नरसंहार और पश्चिम बंगाल के औद्योगीकरण पर माकपा के रवैये ने मुझे अंग्रेज लेखक <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/George_Orwell"><span>जार्ज</span> <span>ओर्वेल</span></a> के विश्वप्रसिद्ध उपान्यास "<a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Animal_Farm"><span>एनिमल</span> <span>फ़ार्म</span></a> " की इन पंक्तियों की याद दिला दी। यह उपन्यास <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Stalin"><span>स्टालिन</span></a> के रूस के उपर कटाक्ष है।पंचतंत्र की तरह सांकेतिक विधा में लिखी गयी इस कहानी में पशुओं के एक बाड़े की पृष्ठभूमि के माध्यम से <span>स्टालिन</span> स्टाईल के साम्यवाद के दोहरापन का मजेदार वर्णन किया गया है।ये कहानी समझाती है कि साम्यवाद के लुभावने सपनों के सहारे सत्ता हथिया कर साम्यवादी शासक किस तरह जनहित के चोले और राज्य के अधिकार जैसे पदों की आड़ में जनता का शोषण करते हैं, मनुष्यमात्र की समता के सपने किस तरह वही लोग तोडते हैं, जिनसे सबसे ज्यादा आशा रहती है, और जो इनके लिये सबसे ज्यादा संघर्ष करने का दिखावा करते हैं ।<br /><br />पश्चिम बंगाल में जब साम्यवादी सरकार बनी थी तो तत्कालीन वित्तमंत्री ने कहा था कि हम उद्योगपतियों को चैन से नहीं बैठने देंगे। नतीजा हुआ कि बंगाल जो किसी समय देश का सबसे औद्योगिकृत राज्य था, आज उद्योगों के मामले में फ़िसड्डी है। अब माकपा को औद्योगीकरण की सुध आयी है, तो वह किसी भी कीमत पर उद्योग लगाना चाहती है, चाहे वो कीमत निरपराधों का ही क्यों ना हो। अपनी जरुरत के हिसाब से ना सिर्फ सिद्धांतों को बदला, जाता है अपितु सिद्धांतों की व्याख्या ही बदल जाती है।नक्सलवादी आंदोलन को कम्युनिस्ट सामाजिक-आर्थिक अन्याय कि दें बताते थे और उसे समझाने और कारकों को दूर कराने की बात कहते थे, आज वे उनके दुश्मन बन बैठे हैं और नक्सलवाद को सख्ती से कुचलने की बात कही जा रही है। <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Bhopal_gas_tragedy"><span>भोपाल</span><span>गैस</span> <span>काण्ड</span></a> के चलते डाउ केमिकल को भगाने की बात कराने वाले, नन्दिग्राम में निवेश के लिए उन्ही से गुहार लगाने गए थे। आज उसी जमात-ए-उलेमा-ए-हिंद को साम्प्रदायिक कहा जा रह है जिसके साथ पिछले साल बुश के आने पर माकपा ने मुम्बई में विरोध प्रदर्शन किया था। प्रश्न यह नहीं है कि वह पहले सही थे ये आज, पर क्या उन्हें सुविधानुसार पाले बदलना उनके अवसरवादी चरित्र को उजागर नहीं करता। सबसे बडे साम्यवादी दल होने के बावजूद उनकी विश्वसनीयता सबसे कम है, पर उनकी नीतियों से भारत में साम्यवादी और समाजवादी राजनीति की साख खराब हो रही है।<br /><br /><span>समाजवाद</span> <span>के</span> <span>महान</span> <span>आदर्श</span> <span>नारों</span> <span>तक</span> <span>ही</span> <span>क्यों</span> <span>रह</span> <span>जाते</span> <span>हैं</span>। <span>कुछ</span> <span>लोगों</span> <span>की</span> <span>स्वार्थपरकता</span> <span>समष्टि</span> <span>के</span> <span>हित</span> <span>पर</span> <span>भारी</span> <span>क्यों</span> <span>पड</span> <span>जाती</span> <span>है</span>? <span>स्टालिन</span> <span>के</span> <span>रूस</span> <span>और</span> <span>साम्यवाद</span> <span>के</span> <span>नाम</span> <span>पर</span> <span>अन्यत्र</span> <span>होने</span> <span>वाले</span> <span>अत्याचार</span> <span>यही</span> <span>बताते</span> <span>हैं</span> <span>कि</span> <span>का</span> <span>मनुष्य</span> <span>द्वारा</span> <span>शोषणा</span> <span>किसी</span> <span>व्यवस्था</span> <span>विशेष</span> <span>के</span> <span>फल</span> <span>नहीं</span> <span>हैं</span> <span>अपितु</span> <span>शोषण</span> <span>का</span> <span>ये</span> <span>क्रम</span> <span>तब</span> <span>तक</span> <span>चलता</span> <span>रहेगा</span> <span>जब</span> <span>तक</span> <span>मनुष्यमात्र</span> <span>में</span> <span>मनुष्यता</span> <span>के</span> <span>प्रतिआदर</span> <span>और</span> <span>आदर्शों</span> <span>के</span> <span>प्रतिनिष्ठा</span> <span>नहीं</span> <span>पैदा</span> <span>होती</span>। <span>अगर</span> <span>ब्रिटेन</span> <span>और</span> <span>अमेरिका</span> <span>में</span> <span>औद्योगिक</span> <span>क्रंति</span> <span>के</span> <span>दौरां</span> <span>श्रमिकों</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>अन्याय</span> <span>हुआ</span>, <span>तो</span> <span>स्टालिं</span> <span>के</span> <span>रूस</span> <span>और</span> <span>छद्मसाम्यवादी</span> <span>चीन</span> <span>के</span> <span>हाथ</span> <span>भी</span> <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Tiananmen_Square_protests_of_1989"><span>ख़ून</span> <span>से</span> <span>रंगे</span> <span>हुए</span> </a><span>हैं </span> <span>जार्ज</span> <span>ओर्वेल</span> <span>की</span> <span>यह</span> <span>कहानी</span> <span>स्वार्थसिद्धि</span> <span>के</span> <span>लिये</span> <span>व्यवस्था</span> <span>के</span> <span>दुरुपयोग</span> <span>का</span> <span>शास्त्रिय</span> <span>वर्णन</span> <span>है</span> । जार्ज ओर्वेल ने यह कहानी सोवियत रूस में स्टालिन से प्रभावित होकर लिखी थी, लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह उतनी ही सही लगाती है।<br />कहानी शुरु होती है, पशुओं के एक फ़ार्म से जिसके पशु अपने मालिक से इसलिये परेशान रहते हैं कि वो उनसे काम ज्यादा लेता है, लेकिन अपेक्षित बर्ताव नहीं करता है। पशुओं कि सभा होती है जिसका नेतृत्व ओल्ड मेजर(<a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Karl_marx"><span>कार्ल</span> <span>मार्क्स</span></a> से प्रेरित चरित्र) नाम का सुअर करता है, सभा में वह पशुओं को अपने सपने के बारे में बताता है कि एक दिन फर्म से मनुष्य चले जायेंगे और पशु शांति और समरसता से रहेंगे. तीन दिनों बाद ओल्ड मेजर मर जाता है तो स्नोबाल और नेपोलियन नाम के दो सूअर विद्रोह का निश्चय करते हैं. पशुओं में सबसे वृद्ध एक गधा कहता है कि उसने बहुत जिंदगी देखी है और वो जानता है कि अंततः कुछ नहीं बदलेगा, जवान पशु समझते हैं कि गधे के बुढे खून में क्रांति की कमी है और उसा पर ध्याना नहिं देते हैं। सारे पशु इस आशा से लडते हैं कि विद्रोह के बाद साम्यवाद आयेगा, सबको स्वधीनता और समता प्राप्त होगी। नियत समय पर युद्ध शुरु होता है, कुछ पशु शहीद होते हैं, कमांडर सहित कुछ को गोली लगती है लेकिन अंततः मालिक मारा जाता है और फ़ार्मा स्वतंत्र होता है। फ़ार्म का नाम "एनिमल फार्म " रखा जाता है।सारे पशु खुशियां मनाते हैं, भविष्य के लिये सात दिशानिर्देश तय होते हैं, जिनको फ़ार्म के बीचोबीच एक तख्ते पर लिखा जाता है।<br /><br />सभी दोपाये शत्रु हैं।<br />सभी चौपाये मित्र हैं।<br />कोई पशु वस्त्र नहीं पहनेगा।<br />कोई पशु पलंग पर नहीं सोयेगा।<br />कोई पशु शराब नहीं पियेगा।<br />कोई पशु दुसरे पशु की हत्या नहीं करेगा।<br />सभी पशु समान हैं।<br /><br />पढने लिखने का कार्य केवल सुअरों को आता था, इसलिये शासन कि जिम्मेदारी उंहे सौंप दी जाती है। यह निश्चय होता है कि आगे से मनुष्यों को फ़ार्म में नहीं घुसने दिया जायेगा और जो आने कि कोशिश करेंगे उंहे मार गिराया जायेगा। फ़ार्म की रक्षा के लिये नेपोलियं कुत्तों कि एक फ़ौज तैयार करता है। ये फ़ौज आंतरिक सुरक्षा का भी ध्यान रखती है। पशुओं में छिपे मनुष्यों के भेदियों को पकडना और उंहे सजा देना इसका मुख्य कार्य रहता है। फ़ार्म के बीचोबीच मालिक का महल रहता है, कुछ पशु इसे अत्याचर की निशानी मान कर गिराना चाहते हैं, पर नेपोलियन ये कह के उंहे रोकता है कि महल का उपयोग पशुओं की भलाई के लिये किया जायेगा। कुछ दिनों बाद महल को प्रशासनिक कार्यालय में बदल दिया जाता है, और सारे सुअरा, जो कि सरकारी काम देखते हैं, महल में रहने लगते हैं। अगली फ़सल के लिये सारे पशु जोरदार मेहनत करते हैं, फ़सल भी काफ़ी अच्छी होती है। फ़सल को गोदाम में रखा जाता है, जिसकी निगरानी सुअर करते हैं। सारे पशुओं को जरुरत के अनुसार अनाज मिलता है। सेब की फ़सल सुअरों के लिये रखी जाती है, क्योकि मानसिक परिश्रम के कारणा उंहे ज्यादा पौष्टिक खाना होता है। गायों का दूध बछडों की बजाय कुत्तों को दिया जाता है, क्योंकि उनकी अच्छी सेहत फ़ार्म कि सुरक्षा के लिये जरुरी है। फ़िर भी पशु "अपने फ़ार्म" के लिये जी जां लगा कर मेहनत करते हैं। फ़ार्म के सबसे मेहनती जीव था - बाक्सर नाम का घोडा . उसे सारे पशुओं से सम्माना मिलता था।<br /><br />एक दिना नेपोलियन ने सभा बुलाई। सभा में उसने बताया "फ़ार्म के आर्थिक विकास के लिये औद्योगिकरणा कि आवश्यकता है, इसके लिये पवनचक्की लगाने कि जरुरत है।पवंचक्की के लिये एक पहाडी का चयन हुआ है, जानवरों को पहाडी पर पत्थर पहुंचाने के काम में लगना चहिये। जरुरी मशीनों को बाहर से खरीदा जायेगा, और इसके लिये पैदावार बढाने और बचत करने की जरुरत है।" बेचारे जानवर अगले एक वर्ष तक जीतोड मेहनत करते रहे।बाक्सर अकेले कई पशुओं के बराबर काम करता रहा। बचत की जरुरत बता कर पशुओं को अनाज भी कम मिला, लेकिं काम बढता गया। इस दौराना कई जानवर बीमार हुए, कई मर गये, केवल सुअर और कुत्ते दिनों दिना मोटे होते गये।<br />नेपोलियन की कुत्ता पुलिस कि शक्तियां बढती गयीं। पवनचक्की के लिये जरुरी मशीनों के लिये सुअर मनुष्यों के प्रतिनिधियों से मिलने जाने लगे। मनुष्य भी बंद बग्घियों में आने लगे और पवंचक्की की आड में व्यापार चलता गया।सुअरों के महल में अच्छी शराब, महंगे बिस्तर आदि विलासिता के सामाना भरने लगे। स्नोबाल को नेपोलियन की ये अनैतिक तरीके अच्छे नहिं लगे। उसने जानवरों की सभा बुलाई, और अपना असंतोष व्यक्त किया। कई जानवरों में असंतोष बढता गया। कुछ दिनों बाद नेपोलियन ने सबकी सभा बुलायी और बताया कि "कुछ मनुष्य हमारे फ़ार्म की सफ़लता से जल रहे हैं और फ़ार्म को अस्थिर करने के लिये साजिश रच रहे हैं। हमारे बीच में मनुष्यों के कुछ एजेण्ट हैं, हमें उनसे निपटना होगा।" कुछ पशुओं का कहना था कि फ़ार्म की स्थापना के समय तय किये गये दिशानिर्देशों का पालं नहिं किया जा रहा है।सुअरों को बकी पशुओं के मुकाबले ज्यादा सुविधा मिल रही है, ईत्यादि।।। सारे जानवर बीच वाले तख्ते के पास गये। एक सुअर ने जोर-जोर से पढना शुरु किया। तख्ते पर पहले लिखी सभी लाइनों के साथ नये शब्द जुड गये थे।<br />कोई पशु पलंग पर <span style="color: rgb(204, 102, 0);">चादर</span><span style="color: rgb(204, 102, 0);"> </span><span style="color: rgb(204, 102, 0);">के</span><span style="color: rgb(204, 102, 0);"> </span><span style="color: rgb(204, 102, 0);">साथ</span> नहीं सोयेगा।<br />कोई पशु <span style="color: rgb(204, 102, 0);">अत्यधिक</span><span style="color: rgb(204, 102, 0);"> </span>शराब नहीं पियेगा।<br />कोई पशु दूसरे पशु कि <span style="color: rgb(204, 102, 0);">अकारण</span> हत्या नहीं करेगा।<br /><br />नेपोलियं गरजा कि उसकी सरकार पर झूठे आरोप लगाये गये हैं, तथा आरोप लगाने वाले मनुष्यों के साथ मिल कर "एनिमल फ़ार्म" को अस्थिर करना चाहते हैं। उसने कनु पर गद्दारी का आरोप लगाकर उसे मौत कि सजा सुनाई। कुत्ता पुलिस के कुत्ते स्नोबाल पर झपट पडे। बेचारा सुअर किसी तरह जान बचा कर भागा । सारे जानवर अवाक होकर यह सब देखते रहे। कुछ दिनों बाद एक तूफ़ान ने पवन चक्की को तबाह कर दिया, नेपोलियन ने अपने सहयोगियों की सहायता से झूठ फैलाया कि इसके पीछे स्नोबाल का हाथ है।बाक्सर ने नया मंत्र रत लिया कि नेपोलियन हमेशा सही कहता है।<br />गर्मी के समय में भी पवनचक्की का काम चलता रहा। अत्यधिक परिश्रम और कुपोषणा के चलते घोडे कि हालत दिनों गिना खराब होती गयी। पहाडी पर एक बडा पत्थर ले जाने के प्रयास में वह लुढक पडा। सारे जानवर आसपास जुट गये। कुछ देर बाद शहर से एक गाडी फ़ार्म में पहुंची। पशुओं को बताया गया कि घोडे को ईलाज के लिये शहर ले जाया जायेगा। घोडे को गाडी में लादा जाता है। गधे की नजर गाडी पर पडती है। उपर मोटे अक्षरों में लिखा रहता है-"कसाईघर"।<br />सूअरों का अत्याचार बढ़ता जाता है। पशुओं पर प्रतिबंध लगते हैं और उनकी निगरानी की जाती है। तख्ते पर सात संकल्पों की जगह एक पंक्ति ले लेती है।<br /><span style="color: rgb(153, 0, 0);">"</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">सभी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">पशु</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">समान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">, </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">किंतु</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">कुछ</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">पशु</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">दूसरों</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">से</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">ज्यादा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">समान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">।"</span><br /><i style="color: rgb(153, 0, 0);">All animals are equal, but some are more equal than others</i>।<br /><br />धीरे धीरे फ़ार्म में मनुष्यों का आना जाना बढ जाता है, सुअर उनके साथ बैठ के खाने पीने लगते हैं।कुछ सालों मे सूअर मनुष्यों की तरह दो पैरों पर चलना सीख लेते हैं। उन्ही की तरह के कपडे और कुर्सी ओकर बैठ कर खाने लगते हैं। गधा देखता है कि सुअरों के चेहरे ईंसानों में बदलने लगे हैं, और उनकी हंसी आदमी की हंसी से मिल रही है। पशु अब सूअरों और मनुष्यों में फर्क नहीं कर पाते हैं।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-31398571859184596982007-03-19T19:22:00.000+05:302007-03-19T19:22:52.751+05:30और अब विपिन भाई भी चिट्ठा लिखेंगे.पिछले कई दिनों से <a href="http://www2.blogger.com/profile/06505084537812432100">विपिन बाबू </a>हिंदी मे ब्लोग लिखना चाहते थे, पर इनका सोचना था कि इन्टरनेट पर हिंदी में लिखना काफी मुश्किल काम होगा। अब जब गुगल ने ब्लॉगर के लिए हिंदी transliteration कि सुविधा दे दीं है तो मुझे लगा इन्हें भी शुरू हो जाना चाहिऐ। आखिरकार आज जाके इन्होने भी अपनी <a href="http://www.meribagiya.blogspot.com/">बगिया</a> खोल डाली। और अब शायद कुछ लिखेगा भी। मैंने सुना है कि ये काफी अच्छी कविता करता है, पर मुझे अब तक सुनने का मौका नहीं मिला। लोग बताते हैं कि इसकी कलम में काफी पीड़ा है , इसलिये कमजोर दिलवालों को सीधे सीधे पढने से मना किया जाता है।<br /><br /><span class="">निफ्ट</span> में प्रवेश पाने के बाद से ये कक्षा में और परीक्षा में मेरे पीछे बैठता हैं, ( इसका और मेरा अनुक्रमांक आगे-पीछे है). पिछले चार सालों से हम लोगों का कमरा भी अगल-बगल है पर फिर भी हमारे सहयोग की सीमा परीक्षा-हॉल तक कभी नहीं पहुंच सकी। ये तो अत्ठी फोड़ गया पर मैं छक्की और सत्ती के बीच झूलता रहता हूँ। खैर अपना अपना कर्म है।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-52686072727762073152007-02-21T12:59:00.000+05:302007-02-21T12:59:19.098+05:30मिंगलबॉक्सक्या आप भी ऑर्कुटियाते हैं, <a href="http://orkut.com/">Orkut</a> का उपयोग करने वाले बारह फीसदी लोग भारतीय हैं। ई-मेल और चिट्ठे के बाद सामाजिक नेटवर्किंग अन्तर्जाल की काफी लोकप्रिय सुविधा हो रही है। कुछ दिनों पहले आई आई टी और आई आई एम के भूतपूर्व छात्रों द्वारा एक देसी सामाजिक नेटवर्किंग साईट <a href="http://www.minglebox.com/">मिंगलबॉक्स</a> खोली गयी है।<br />अगर आपने ऑर्कुट का प्रयोग किया है तो शायद आपको इसमें कुछ चीजों की कमी खले, पर मिंगलबॉक्स की कई नयी सुविधायें आपको पसन्द आयेंगी, मसलन एकीकृत ब्लॉगिंग खाता और चिटचैट। इसका देसी अंदाज भी खासतौर से भारतीयों की पसन्द को ध्यान में रख कर बनाया गया है। अगर इसमें हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं का जुगाड़ हो जाए तो और अच्छा होगा। अभी साइट नयी है और इसमें काफी सुधार की गुंजाइश है।<br />कुल मिला कर हमारे आपके लिये एक से ज्यादा विकल्प होने का फायदा ही है।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-75932835411450245202006-12-15T17:24:00.000+05:302006-12-15T17:24:11.074+05:30अथ आरक्षण कथाकल का दिन भारतीय संसद के उन गिने चुने दिनों में था जब सारे नेतागण आम सहमति से काम करते हैं। पिछले कुछ सालों में ऐसा कुछेक बार ही हुआ है। पहले सांसदों के वेतन बढाने का मामला था, न्यायपालिका की सक्रियता का मसला था और लाभ के पद वाला विधेयक था। जब सारे देश में आरक्षण पर सार्थक चर्चा चल रही थी और शिक्षाविदों तथा छात्रों में आरक्षण के प्रारुप में परिवर्तन के लिये सहमति थी, यहॉ तक की खुद संसद की स्थायी समिति ने मूल विधेयक में परिवर्तन का प्रस्ताव किया था। सरकार ने आश्चर्यजनक फुर्ती का परिचय देते हुए तुरत फुरत मे विधेयक पास करा लिया। बात बात पर टॉंग अडाने वाले विपक्षी दलों ने भी पुरा समर्थन दिया, वरना शायद कहीं पिछडा विरोधी होने का चस्पा लग जाता तो। खुद को गरीबों के हिमायती मानने वाले और सिद्धांततः जाति की जगह वर्ग में विश्वास रखने वाले वामपंथीयों ने क्रीमीलेयर तक को आरक्षण की परिधि में लाने पर चू तक नहीं की। गरीबी की कोई जाति नहीं होती लेकिन भारतीय परिवेश मे मतों की तो होती है।<br />लोकलुभावन राजनीति और जातिवादी समीकरणों के इस युग में सही गलत की किसे चिन्ता है। आरक्षण लागू होने के वर्षों बाद भी सभी जातियों के करोंडो गरीब आज भी प्राथमिक शिक्षा का मुँह नहीं देख पाते, लाभ उन्हीं को मिलता है जिनके माता पिता पहले से ही समर्थ होते हैं। सरकार लोगों के प्रति अपने कर्तव्यों की विफलता को आरक्षण के माध्यम से ढकना चाहती है। संविधान सभा में आरक्षण पर काफी चर्चा हुई थी, नेहरु और अम्बेडकर दोनों ने इसका विरोध किया था। एक जातिविहीन, भेदविहीन समाज की रचना आरक्षण से कभी नहीं की जा सकती। अम्बेडकर दलितों को अवसर की समानता दिलाना चाहते थे, उपर से थोपी हुई भीख में मिली बैसाखी नहीं। उनका मानना था, कि अगर कोई जाति के कारण किसी पद तक पहुँचता है तो उसे सहकर्मियों और समाज से वो मान्यता और सम्मान नहीं मिल सकते जो योग्यता के कारण मिलते। दलितों का सशक्तिकरण सही रुप में होने के लिये बुनियादी स्तर पर सुधार की आवश्यकता है, न की गिने चुने लोगों को सौगात बॉटने की। खैर आरक्षण की व्यवस्था नीतिनियंताओं के विरोध के बावजूद मान ली गयी केवल दस वर्ष के लिये। शायद किसी को इसके आगे चलकर घातक बिमारी बनने की आशा न थी। पर आज के परिवेश को देखकर लगता है कि इस ग्रन्थि ने कितना विभत्स रुप धारण कर लिया है। हैरानी की बात ये है कि कभी न्याय और आदर्शों की बात करने वाला जनमानस भी इसे नियति मानकर चुप है।<br />दुर्भाग्य की बात है कि जब हमारा समाज, मुख्यतः युवा वर्ग जाति पात कि चेतना भूल रहा है और जातिगत भेदभाव पिछडेपन की निशानी माना जा रहा है, तब हमारे राजनेता इस भूत को जिन्दा करने की कोशिश में लगे हुए हैं। हों भी क्यों न भाई, अगर जातिगत भेद मिट गये तो वोट कैसे मिलेंगे? यह दुर्भाग्यपुर्ण सत्य है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चुनाव जातिगत समीकरणों पर लडे जाते हैं, अगर जाति मुद्दा नहीं रही तो असल महत्व के मुद्दे जनता के सामने खडे हो जायेंगे। जनता विकास और नीतियों पर सवाल पूछने लगेगी, फिर राजनीतिज्ञों की दुकान कैसे चलेगी। अभी तो बडे बडे डाकू और लुटेरे, अपराधी सभी बिरादरी के नाम पर चुन लिये जाते हैं। यह तो नेताओं के हित में ही है कि जातियॉ बनी रहे, जनता पिछडी रहे और मन्दिर मस्जिद, अगडो-पिछडों के बीच बँटी रहे।<br />हमारे उत्तर प्रदेश में किसी जाति को पिछडी सूची में आना चुनाव से तय होता है, पिछले चुनाव में एक प्रभावशाली क्षेत्रीय जाति को प्रलोभन मिला था कि अगर एक क्षेत्र विशेष से एक पार्टी जितेगी तो उन्हें पिछडी सूची में स्थान मिलेगा। ऐसा हुआ भी, उस समुदाय के बहुत से धनपतियों के पुत्र आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। बहुत से विपन्न आरक्षित सूची में ना होने के कारण, छात्रवृत्ति तक से वंचित हैं।<br />अगर इमानदारी से देखा जाय तो, आरक्षित वर्गों को भी किंचित ही लाभ मिला है। उन वर्गों के गिने चुने मलाइदार लोग मजा उठा रहे हैं जबकि सकारात्मक प्रक्रिया के असल अधिकारी जस के तस हैं। मेरे अपने कॉलेज़ में और लगभग देश के सभी संस्थानों में फायदा उठाने वाले सम्पन्न परिवारों के लोग ही है। जब कमजोरी प्राथमिक स्तर पर है तो दिखावे वाले उपायों से क्या होगा अलबत्ता सामाजिक समरसता की बलि अवश्य चढ जायेगी। आज की युवा पीढी में जाति नामक शब्द पूछना अब असभ्य माना जाता है। पर जब हमारे आवेदनपत्रों और प्रमाणपत्रों में बार बार जाति का नाम लिखा जायेगा, हमारे गुण दोष पारिवारिक इतिहास से तौले जायेंगे तो जाति तो जिन्दा रहेगी ही।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5714441622345375226.post-34712059023671912722006-12-07T20:52:00.000+05:302008-12-13T15:28:11.247+05:30शिबू सोरेन:संघे शक्ति कलियुगे<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn_aBVRCAcbR59pVTq37__23_m_g3xcA2HN19HTF-_i8kIU6cJds71dhG5tAjLaf-P-M7e3IvLwbTpz2NkgwOOoaYvY9vc4GAgay8kE_bcuybrxfyLGPOvXy7FghoiN5dMkaIzMcYQAxo/s1600-h/29sibu.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn_aBVRCAcbR59pVTq37__23_m_g3xcA2HN19HTF-_i8kIU6cJds71dhG5tAjLaf-P-M7e3IvLwbTpz2NkgwOOoaYvY9vc4GAgay8kE_bcuybrxfyLGPOvXy7FghoiN5dMkaIzMcYQAxo/s320/29sibu.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5005805575401223410" border="0" /></a><br /><br />आजकल राँची में राजनीति गर्म है। गुरुजी को कल ही अदालत से आजीवन कारावास की सजा हुई। बेवकूफ जज को कहाँ पता था गुरुजी की महानता के बारे में, सी बी आई वाले तो ऐसे ही झूठी कहानीयाँ गढते रहते हैं। कई बार यह सब सिद्ध भी हो चुका है। चाहे हवाला हो या चारा घोटाला, बोफोर्स हो या बाराक, इतिहास गवाह है कि सी बी आई के आरोप मनगढन्त होते हैं। बेचारे गुरुजी को अंग्रेजी बोलना नहीं आता और पिछडे क्षेत्र से हैं इसलिये फंसा दिये गये। अब सेंधरा(धर्मयुद्ध) की तैयारी है, पर झामुमो वालों के बन्द पर कोर्ट ने पाबन्दी लगा दी है। अब आजकल ये काले कोट वाले लोग कुछ ज्यादा ही उछल रहे हैं, माननीय खादीवालों की परेशानियाँ बढ गयी हैं।<br />अगर ऐसे हालात जारी रहे तो देश के कर्णधारों का क्या होगा। जब केन्द्र सरकार के कैबिनेट मन्त्री फंस गये तो छोटे मोटे भैयालालों का क्या ठिकाना। नेता बिरादरी के लिये यह नयी चुनौती है, राजनीतिक दलों को दलगत स्वार्थ से उपर उठ कर माननीय समुदाय की रक्षा के लिये कदम उठाने होंगे। मजाक है क्या, आज गुरुजी को फंसाया गया है, कल कोई और होगा, आखिर सार्वजनिक जीवन में पुण्यकर्म तो सभी को करने पडते हैं। गुरुजी ने जो किया, वो तो माननीयों के हित में ही था। चुनाव जीत कर गुरुजी लोकसभा पहुँचे थे, राव साहब की सरकार उनकी सहृदयता से बची थी, फिर झाजी कौन होते थे हिस्सा बँटाने वाले। यह सिद्धान्तों का प्रश्न था।<br />आज अखबार में गुरुजी के पार्टी के एक बडे नेता की अपील पढ के मेरा मन भर आया। नेताजी का कहना था कि, जब लालूजी चारा घोटाले में जेल गये थे तो गुरुजी ने उनका सहयोग किया था और उनकी सरकार को समर्थन दिया था। नैतिक आधार पर राजद को भी गुरुजी का समर्थन करना चाहिये, लेकिन लालू ने तो धोखा दे दिया और गुरुजी से इस्तिफे की माँग कर दी। राम, राम, राम क्या होगा देश का अगर नेता लोग ही ऐसा अनैतिक और अवसरवादी आचरण करने लगें। आखिर सबको एक दूसरे के समर्थन की जरुरत पड सकती है। संकट की इस घडी में कई लोग गुरुजी से सहानुभुति दिखाने लगे हैं। कल तक विरोधी रहे मरांडी साहब अब आंसू टपका रहे हैं। अर्जुन मुन्डा अभी पानी का अंदाजा ले रहे हैं। कुछ दिन पहले जब सामुहिक नरसंहार के एक मामले में गुरुजी को जेल हुई थी तो काँग्रेस वाले साथ थे, अभी उतनी तत्परता नहीं दिख रही।<br />जो भी हो नेता बिरादरी को एक साथ मिलकर इस सबसे निपटना होगा, वैसे ही एकजुटता दिखानी होगी जैसी लाभदायक पद वाले बिल पर, आरक्षण पर और सांसदों का वेतन बढाने के मसले पर दिखी थी।विशाल सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09223766680957676922noreply@blogger.com3