पिछले कई दिनों से विपिन बाबू हिंदी मे ब्लोग लिखना चाहते थे, पर इनका सोचना था कि इन्टरनेट पर हिंदी में लिखना काफी मुश्किल काम होगा। अब जब गुगल ने ब्लॉगर के लिए हिंदी transliteration कि सुविधा दे दीं है तो मुझे लगा इन्हें भी शुरू हो जाना चाहिऐ। आखिरकार आज जाके इन्होने भी अपनी बगिया खोल डाली। और अब शायद कुछ लिखेगा भी। मैंने सुना है कि ये काफी अच्छी कविता करता है, पर मुझे अब तक सुनने का मौका नहीं मिला। लोग बताते हैं कि इसकी कलम में काफी पीड़ा है , इसलिये कमजोर दिलवालों को सीधे सीधे पढने से मना किया जाता है।
निफ्ट में प्रवेश पाने के बाद से ये कक्षा में और परीक्षा में मेरे पीछे बैठता हैं, ( इसका और मेरा अनुक्रमांक आगे-पीछे है). पिछले चार सालों से हम लोगों का कमरा भी अगल-बगल है पर फिर भी हमारे सहयोग की सीमा परीक्षा-हॉल तक कभी नहीं पहुंच सकी। ये तो अत्ठी फोड़ गया पर मैं छक्की और सत्ती के बीच झूलता रहता हूँ। खैर अपना अपना कर्म है।
सोमवार, 19 मार्च 2007
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